Monday, 5 September 2011

GURU BHAKTA SIKANDAR

 
भारत ही नहीं वरन संसार के महान योधा और विद्वान् जिनका नाम इतिहास में स्रेस्ठता को प्राप्त किये हुए है उन सभी ने अपने गुरु के निर्देशानुसार कार्य करके अपने जीवन को सार्थक बनाया। यही कारण है की गुरु का स्थान इश्वर से भी ऊचा है  गुरु वही नहीं है जिससे हम गुरु मंत्र ले अपितु गुरु वो है जिससे हमने एक अक्षर भी ज्ञान प्राप्त किया हो जब हम इस संसार में अपनी आँखे खोलते हैं तो हमारे सामने संसार की पहली गुरु माँ जिसने हमे जीवन दिया उसको पाते है , माँ हमे जीवन के आधार और रीति रिवाजो से परिचित करवाती है जिसपर हम चलकर अपने जीवन को और अपने समाज को धन्य बनाते हैं हमेशा याद रखिये गुरुजन जो भी कहते या करते है उसमे कोई न कोई गूढ़ अर्थ अवश्य छुपा होता है अतः उनपर संदेह ना करके शान्ति से उनके तथ्यों पर विचार करना चाहिए यही नीति है और गुरु शिष्य मर्यादा है 
      आज मै आप लोगो के समक्ष एक ऐसी कहानी रखता हूँ  जो एक ऐसे शासक पर आधारित है जिसकी शक्ति का लोहा संसार ने माना है। और उसके नाम के बाद महान लगाकर गौरान्वित किया है
सिकंदर ग्रीक देश का राजा था अपने देश की सीमओं और अपने लोगो के लिए उसने संसार के सभी देशो को जीतने के लिए विश्वविजय अभियान चलाया था जब तक वह जीवित रहा उसे कभी भी हार का मुख  नहीं देखना पडा इसका मुख्या  कारण उसका अपने गुरु पर अटल विश्वास था 
एक बार की बात है सिकंदर के गुरु ने सिकंदर से कहा बेटा कभी भी सत्रर के चक्कर में ना पड़ना संसार की सबसे जटिल समस्याओं में इसका नाम शामिल है सदा याद रखो की जब तुम स्त्री के आधीन हो जाओगे और उसके रूप रंग में रत होगे तुम्हारी शारी शक्ति और वीरता उस समय समाप्त हो जायेगी और एक साधारण सा व्यक्ति भी तुमसे अधिक शक्तिशाली प्रतीत होगा सिकंदर ने कहा गुरु जी एक स्त्री जो अबला कहलाती है जिसका कार्य पति  की सेवा और बच्चो  का पालन पोषण होता है भला वह इतनी शक्तिशाली कैसे हो सकती है की मु जैसे महायोधा को परास्त कर सके
सिकंदर गुरु की बात से अचंभित और शशंकित था गुरु ने उसके मन की बात को भाप लिया और कहा सिकंदर कल सुबह मेरे घर पर आना मै तुमको ये बात सिद्ध करके बता दूंगा 
अगले दिन सुबह जब सिकंदर गुरु जी के घर पंहुचा तो वह देखा की गुरु जी की पीठ पर एक औरत बैठी हुई है और गुरु जी उसको लेकर चल रहे है यह द्रश्य देखकर सिकंदर लज्जा और क्रोध से भर उठा और वापस अपने महल में चला आया बाद में जब गुरु जी महल पहुचे तो कहा सिकंदर तुम मेरे घर क्यों नहीं आये इस पर सिकंदर ने कहा गुरु जी आज मुको आप की वजह से बड़ी लज्जा आ रही है की आप मेरे गुरु होकर इतने असमर्थ थे की आज एक स्त्री आप की सवारी कर रही थी अगर आप उस दुष्टा से निपटने में समर्थ नहीं थे तो मुघसे हे कह दिया होता एक हे वार में मै उसको समाप्त कर देता 
सिकंदर की इस बात पर गुरु जी ने कहा सिकंदर मैंने तुम्हे यही सब तो दिखाने के लिए बुलाया था जिस स्त्री को तुम मारने की बात कर रहे हो वह मेरी पत्नी है मै उसके सामने विवास हूँ अब जरा सोचो जो स्त्री तुम्हारे गुरु को घोड़ा बन्ने पर विवश कर सकती है तो तुम्हारा क्या करेगी यह जानकार सिकंदर की आंखे खुल गई उसने तुरंत अपने गुरु  जी से क्षमा मांगी और जीवन भर सफलता ने उसके कदम चूमे और सिकंदर महान कहलाया 
 

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