Thursday 22 September 2011

जब दुविधा में फंसे तो क्या करे




किसी शहर में एक परिवार रहता था , उस परिवार में माता-  िपता और उनके एक पुत्र और पुत्री थे िपता जी ऋषि थे और उनका पुत्र व्यापारी  था  उनकी पुत्री युवा हो गई थी घर में सभी को उसके विवाह की चिंता थी 
ऋषि के एक शिष्य थे जो बड़े हीे ज्ञानी और गुरु भक्त थे ऋषि उनको बहुत प्रेम करते थे , ऋषि ने जब गहनता से सोचा तो उन्हें अपने शिष्य से योग्य और कोई वर न दिखा और उन्होंने अपने शिष्य से भी विवाह की बात चलाई , वह सहर्ष तैयार हो गया इधर ऋषि पुत्र ने अपने मित्र को ही योग्य वर के रूप में देखा और अपनी बहन का रिश्ता पक्का कर दिया 
ऋषि पत्नी भी अपनी पुत्री के लिए चिन्तिते थी एक लड़का जो पड़ोस में रहता था वो अक्सर ऋषि पत्नी के कार्यो में हाथ बटा देता था और किसी भी असुविधा में उनकी निस्वार्थ भाव से सेवा करता था उनको सुयोग्य वर के रूप में वही अछा लगा उन्होंने उससे विवाह की बात चलाई तो वह भी सहर्ष तैयार हो गया , अब सभी वचनों में बंध चुके थे स्थिति बहुत विचित्र थी 
जब यह बात कन्या के सामने आई तो सभी ने कन्या से कहा की जीवन तुम्हारा है , तुम हे निर्णय लो की तुम्हे किस्से विवाह करना है और किस्से नहीं कन्या यह सुनकर अचम्भे में पड़ गई और सोचने लगी यदि मै किसी भी एक को विवाह के लिए स्वीकार करती हूँ तो बाकी मेरे दो परिजनों का वचन भंग होगा जो वह सहन नहीं कर सकती थी अतः उसने अपने प्राण त्यागने का निर्णय लिया ताकि सभी के वचनों की गरिमा बनी रहे जब वह जीवित ही नहीं रहेगी तो वचन का क्या अस्तित्व है और रात में ही उसने आत्महत्या कर ली 
सुबह जब परिजनों ने कन्या का मृत शारीर देखा तो सभी दुःख से भाव विभोर हो उठे उन्होंने कन्या का विदि पूर्वक अंतिम संस्कार किया  उस समय समसान में वे तीनो युवक भी उपस्थित थे और कन्या के लिए दुखी थे परिजन तो अंतिम संस्कार करके चले गए परन्तु वो तीनो वहां रुके रहे और उन्होंने उस कन्या के प्रेम में अपने जीवन को उसी की यादो में बिताने का निर्णय कर लिया 
ऋषी शिष्य शास्त्रों और तंत्र विद्या का ज्ञाता था उसने कहा मै हार नहीं मानूंगा मै इस कन्या को पुनर्जीवित करूँगा , व्यापारी के मित्र ने कहा मै इस कन्या की हड्डियों को अपने पास रखूँगा यही मेरे प्रेम की निशानी होगी और मेरी ओर से इस कन्या को श्रधांजलि होगी  teesra युवक bola मै यही rahunga इसी समसान में और यही जीवन bita doonga , और इस कन्या की भस्म की रक्षा करूँगा और संभाल कर रखूँगा मेरी ओर से यही श्रधांजलि होगी तीनो उस कन्या के विरह में भाव विभोर हो गए थे तीनो ने निश्चय किया हम सभी १ वर्ष के पश्चात आज के ही दिन यहाँ मिलेंगे और अपने प्रेम के अनुभवों को एक दूस्रे से बाटेंगे उनमे से एक समसान में रुक गया बाकी के दो अपने अपने उद्देश्य की ओर निकल पड़े 
              ऋषी शिष्य एक महाज्ञानी और तंत्र के जानकार तांत्रिक से मिला और उनकी सेवा में समर्पित हो गया उनके पास संजीवनी शक्ति वाली विद्या थी जिससे मृत शारीर में प्राण फूके जा सकते थे अपने शिष्य की गुरु भक्ति से वह इतने प्रभावित हुए की वह विद्या उन्होंने उसे भी इखाना प्रारंभ कर दिया और समय बीतने लगा उधर व्यापारी अपने साथ कन्या की अस्थिय लेकर घूमता रहा और अपना कर्म करता रहा और शमसान वाला युवक कन्या की स्मृतिय ह्रदय में लिए उसकी भस्म की रक्षा करता रहा ऐसे होते करते समय बीत गया और एक वर्ष पूर्ण हुआ 
वो दोनों वापस एक वर्ष पश्चात उसी समसान पहुचे और तीनो इकठा हुए ऋषि शिष्य ने कहा मित्रो अब चिंता की कोई बात नहीं मैंने संजीवनी विद्या सीखी है और इसके प्रभाव से मै कन्या को पुनर्जीवित करूँगा आप लोग उसकी अशहियो और भस्म को एक स्थान पर रख दे मै उसे इसी क्षण पुनर्जीवित करता हूँ सभी प्रसन्न हो गए और विधि पूर्वक  उसको जीवित करने की प्रक्रिया शुरू कर दी अंत में कन्या जीवित हुई और पुनः उसके सामने वही प्रश्न था की कौन होगा उसका वर 
अब कन्या ने निर्णय लिया की जो शमसान में पूरे एक वर्ष तक रहा वह उससे ही विवाह करेगी यह सुनका शमसान वाला तो प्रशन्ना हो गया बाकी दोनों सोच में पड़ गए की आखिर उसने उनको क्यों न चुना जब उन्होंने कन्या से इस निर्णय का कारन पुछा तो उसने उत्तर दिया की आपने मंत्र विद्या द्वारा मुघे जीवन दिया जो िपता का कार्य है इस दृष्टि से आप मेरे िपता हुए जो मेरी अस्थियो को लाये और उनकी रक्षा की ये कार्य पुत्र का है इस दृष्टि से आप मेरे पुत्र के सामान है और जिन्होंने मेरे शारीर की भस्म की रक्षा करते हुए यही निवास किया और मेरे साथ रहे ये कार्य पती का है अतः मैंने इनको ही वरण किया
कन्या के इस उत्तर से सभी संतुष्ट थे क्योकि उसका उत्तर तर्क संगत और धर्म संगत था  
प्रिय मित्रो मेरा उद्देश्य यही है की जब आप किसी ऐसी स्थिति में फस जाए की दुविधा में पड़ जाए तो धर्म पक्ष पर विचार करे जो आपको मार्ग दिखायेगा जीवन की परेशानियों से मुक्ति शारीर का तय करके नहीं मिल सकती क्या पता तब स्थिति और भी भयानक हो जाए और हमारे सामने उस दुःख को भोगने के शीवाय कोई दूसरा चारा ना हो 
अतः जीवन के खट्टे मीठे अनुभवों का आनंद लेते हुए जियो , प्रेम करो सभी से जो तुम्हे प्रेम करते है और अगर नहीं करते तो जरूर करने लगेंगे --------हरी ॐ तत्सत 


Monday 5 September 2011

GURU BHAKTA SIKANDAR

 
भारत ही नहीं वरन संसार के महान योधा और विद्वान् जिनका नाम इतिहास में स्रेस्ठता को प्राप्त किये हुए है उन सभी ने अपने गुरु के निर्देशानुसार कार्य करके अपने जीवन को सार्थक बनाया। यही कारण है की गुरु का स्थान इश्वर से भी ऊचा है  गुरु वही नहीं है जिससे हम गुरु मंत्र ले अपितु गुरु वो है जिससे हमने एक अक्षर भी ज्ञान प्राप्त किया हो जब हम इस संसार में अपनी आँखे खोलते हैं तो हमारे सामने संसार की पहली गुरु माँ जिसने हमे जीवन दिया उसको पाते है , माँ हमे जीवन के आधार और रीति रिवाजो से परिचित करवाती है जिसपर हम चलकर अपने जीवन को और अपने समाज को धन्य बनाते हैं हमेशा याद रखिये गुरुजन जो भी कहते या करते है उसमे कोई न कोई गूढ़ अर्थ अवश्य छुपा होता है अतः उनपर संदेह ना करके शान्ति से उनके तथ्यों पर विचार करना चाहिए यही नीति है और गुरु शिष्य मर्यादा है 
      आज मै आप लोगो के समक्ष एक ऐसी कहानी रखता हूँ  जो एक ऐसे शासक पर आधारित है जिसकी शक्ति का लोहा संसार ने माना है। और उसके नाम के बाद महान लगाकर गौरान्वित किया है
सिकंदर ग्रीक देश का राजा था अपने देश की सीमओं और अपने लोगो के लिए उसने संसार के सभी देशो को जीतने के लिए विश्वविजय अभियान चलाया था जब तक वह जीवित रहा उसे कभी भी हार का मुख  नहीं देखना पडा इसका मुख्या  कारण उसका अपने गुरु पर अटल विश्वास था 
एक बार की बात है सिकंदर के गुरु ने सिकंदर से कहा बेटा कभी भी सत्रर के चक्कर में ना पड़ना संसार की सबसे जटिल समस्याओं में इसका नाम शामिल है सदा याद रखो की जब तुम स्त्री के आधीन हो जाओगे और उसके रूप रंग में रत होगे तुम्हारी शारी शक्ति और वीरता उस समय समाप्त हो जायेगी और एक साधारण सा व्यक्ति भी तुमसे अधिक शक्तिशाली प्रतीत होगा सिकंदर ने कहा गुरु जी एक स्त्री जो अबला कहलाती है जिसका कार्य पति  की सेवा और बच्चो  का पालन पोषण होता है भला वह इतनी शक्तिशाली कैसे हो सकती है की मु जैसे महायोधा को परास्त कर सके
सिकंदर गुरु की बात से अचंभित और शशंकित था गुरु ने उसके मन की बात को भाप लिया और कहा सिकंदर कल सुबह मेरे घर पर आना मै तुमको ये बात सिद्ध करके बता दूंगा 
अगले दिन सुबह जब सिकंदर गुरु जी के घर पंहुचा तो वह देखा की गुरु जी की पीठ पर एक औरत बैठी हुई है और गुरु जी उसको लेकर चल रहे है यह द्रश्य देखकर सिकंदर लज्जा और क्रोध से भर उठा और वापस अपने महल में चला आया बाद में जब गुरु जी महल पहुचे तो कहा सिकंदर तुम मेरे घर क्यों नहीं आये इस पर सिकंदर ने कहा गुरु जी आज मुको आप की वजह से बड़ी लज्जा आ रही है की आप मेरे गुरु होकर इतने असमर्थ थे की आज एक स्त्री आप की सवारी कर रही थी अगर आप उस दुष्टा से निपटने में समर्थ नहीं थे तो मुघसे हे कह दिया होता एक हे वार में मै उसको समाप्त कर देता 
सिकंदर की इस बात पर गुरु जी ने कहा सिकंदर मैंने तुम्हे यही सब तो दिखाने के लिए बुलाया था जिस स्त्री को तुम मारने की बात कर रहे हो वह मेरी पत्नी है मै उसके सामने विवास हूँ अब जरा सोचो जो स्त्री तुम्हारे गुरु को घोड़ा बन्ने पर विवश कर सकती है तो तुम्हारा क्या करेगी यह जानकार सिकंदर की आंखे खुल गई उसने तुरंत अपने गुरु  जी से क्षमा मांगी और जीवन भर सफलता ने उसके कदम चूमे और सिकंदर महान कहलाया 
 

Saturday 3 September 2011

HORA ( SABHI KARY HETU UTTAM)


HUM SABHI KARYO KE KARNEY SE PEHLEY SHUBH-ASHUBH CHINTAN AVASHYA KARTEY HAI. HAR SAMAY HUMARE PAAS IN JAANKARIYO HETU SAAMAGRI BHI NAHI HOTI. AISE SAY ME AAP HORA MUHURT JO ASANI SE AAP SWAYAM CALCULATE KAR SAKTE HAI AUR POORE DIN KE SAMAY ME SE APNEY KARYO HETU UPAYUKT SAMAY KO CHUN KAR USE ANUSAR KARYA KAR SAKTE HAIN.

VAAR AUR HORA KA PRABHAV 
JAISA KI AAP SABHI JANTE HAIN KI SAPTAAH ME SAAT VAAR HOTE HAIN.IN SABHI KE SWAMI GRAH ALAG-ALAG HOTE HAIN AUR UNHI KE ANUSAAR IN VAARO KO "KROOR" AUR "SAUMYA" KEHTE HAIN .
SADHARAN ROOP SE KROOR VARO ME KOI KARYA NAHI KARNA CHAHIYE . SAUMYA VAAR SABHI KARYO HETU UTAAM HAIN.
KROOR AUR SAUMYA VAAR AUR UNKE LAKSHIT KARYA NIMNANKIT HAIN 

 SUNDAY-------------------RAJYA SEVA HETU UTTAM-----------------KROOR VAAR
MONDAY-------------------SABHI KARYO HETU UTTAM---------------SAUMYA VAAR 
TUESDAY------------------VAAD VIVAD AUR MUKADME-------------KROOR VAAR
WEDNESDAY------------GYAAN ARJAN HETU UTTAM--------------SAUMYA VAAR 
THURSDAY---------------VIVAAH HETU UTTAM------------------------SAUMYA VAAR
FRIDAY--------------------YATRA HETU UTTAM--------------------------SAUMYA VAAR
SATURDAY --------------DHANOPAARJAN HETU UTTAM----------KROOR VAAR

HORA GYAT KARNEY KI VIDHI  

 HORA GYAT KARNEY KE LIYE UPER DIYE GAYE CHITRA KE ANUSAAR GRAHO KO SUNIYOJIT KARTEY HAI. HORA MUHURT KI SHURUVAAT SOORYA UDAY SE HOTI HAI. PRATYEK HORA EK GHANTE KA HOTA HAI. IS PRAKAAR HORA MUHURT 24 GHANTE TAK GYAT KI JA SAKTI HAI.
JIS DIN KI HORA GYAT KARNI HO US VAAR SE MUHURT SHURU HOGI AUR 1 GHANTE TAK WAHI MUHURT CHALEGI . USKE BAAD AGLE GHANTE KE LIYE CHITRA KE ANUSAAR ANDAR SE BAAHAR KI ORE GRAHO KO KRAM SE LAGATE HUE CHALENGEY.
           HORA SAARANI 

(1) SUNDAY KA HORA 

 RAVI--SHUKRA--BUDDHA--CHANDRA--SHANI--GURU--MANGAL--RAVI

(2) MONDAY KA HORA 

 CHANDRA--SHANI--GURU--MANGAL--RAVI--SHUKRA--BUDDHA--CHANDRA 

(3) TUESDAY KA HORA 

MANGAL--RAVI--SHUKRA--BUDDHA--CHANDRA--SHANI--GURU--MANGAL 

UKTA SAARANI KE ANUSAAR HE HUM HORA MUHURT GYAT KARTEY HAIN 

SHIV SIDDHAM