किसी शहर में एक परिवार रहता था , उस परिवार में माता- िपता और उनके एक पुत्र और पुत्री थे िपता जी ऋषि थे और उनका पुत्र व्यापारी था उनकी पुत्री युवा हो गई थी घर में सभी को उसके विवाह की चिंता थी
ऋषि के एक शिष्य थे जो बड़े हीे ज्ञानी और गुरु भक्त थे ऋषि उनको बहुत प्रेम करते थे , ऋषि ने जब गहनता से सोचा तो उन्हें अपने शिष्य से योग्य और कोई वर न दिखा और उन्होंने अपने शिष्य से भी विवाह की बात चलाई , वह सहर्ष तैयार हो गया इधर ऋषि पुत्र ने अपने मित्र को ही योग्य वर के रूप में देखा और अपनी बहन का रिश्ता पक्का कर दिया
ऋषि पत्नी भी अपनी पुत्री के लिए चिन्तिते थी एक लड़का जो पड़ोस में रहता था वो अक्सर ऋषि पत्नी के कार्यो में हाथ बटा देता था और किसी भी असुविधा में उनकी निस्वार्थ भाव से सेवा करता था उनको सुयोग्य वर के रूप में वही अछा लगा उन्होंने उससे विवाह की बात चलाई तो वह भी सहर्ष तैयार हो गया , अब सभी वचनों में बंध चुके थे स्थिति बहुत विचित्र थी
जब यह बात कन्या के सामने आई तो सभी ने कन्या से कहा की जीवन तुम्हारा है , तुम हे निर्णय लो की तुम्हे किस्से विवाह करना है और किस्से नहीं कन्या यह सुनकर अचम्भे में पड़ गई और सोचने लगी यदि मै किसी भी एक को विवाह के लिए स्वीकार करती हूँ तो बाकी मेरे दो परिजनों का वचन भंग होगा जो वह सहन नहीं कर सकती थी अतः उसने अपने प्राण त्यागने का निर्णय लिया ताकि सभी के वचनों की गरिमा बनी रहे जब वह जीवित ही नहीं रहेगी तो वचन का क्या अस्तित्व है और रात में ही उसने आत्महत्या कर ली
सुबह जब परिजनों ने कन्या का मृत शारीर देखा तो सभी दुःख से भाव विभोर हो उठे उन्होंने कन्या का विदि पूर्वक अंतिम संस्कार किया उस समय समसान में वे तीनो युवक भी उपस्थित थे और कन्या के लिए दुखी थे परिजन तो अंतिम संस्कार करके चले गए परन्तु वो तीनो वहां रुके रहे और उन्होंने उस कन्या के प्रेम में अपने जीवन को उसी की यादो में बिताने का निर्णय कर लिया
ऋषी शिष्य शास्त्रों और तंत्र विद्या का ज्ञाता था उसने कहा मै हार नहीं मानूंगा मै इस कन्या को पुनर्जीवित करूँगा , व्यापारी के मित्र ने कहा मै इस कन्या की हड्डियों को अपने पास रखूँगा यही मेरे प्रेम की निशानी होगी और मेरी ओर से इस कन्या को श्रधांजलि होगी teesra युवक bola मै यही rahunga इसी समसान में और यही जीवन bita doonga , और इस कन्या की भस्म की रक्षा करूँगा और संभाल कर रखूँगा मेरी ओर से यही श्रधांजलि होगी तीनो उस कन्या के विरह में भाव विभोर हो गए थे तीनो ने निश्चय किया हम सभी १ वर्ष के पश्चात आज के ही दिन यहाँ मिलेंगे और अपने प्रेम के अनुभवों को एक दूस्रे से बाटेंगे उनमे से एक समसान में रुक गया बाकी के दो अपने अपने उद्देश्य की ओर निकल पड़े
ऋषी शिष्य एक महाज्ञानी और तंत्र के जानकार तांत्रिक से मिला और उनकी सेवा में समर्पित हो गया उनके पास संजीवनी शक्ति वाली विद्या थी जिससे मृत शारीर में प्राण फूके जा सकते थे अपने शिष्य की गुरु भक्ति से वह इतने प्रभावित हुए की वह विद्या उन्होंने उसे भी इखाना प्रारंभ कर दिया और समय बीतने लगा उधर व्यापारी अपने साथ कन्या की अस्थिय लेकर घूमता रहा और अपना कर्म करता रहा और शमसान वाला युवक कन्या की स्मृतिय ह्रदय में लिए उसकी भस्म की रक्षा करता रहा ऐसे होते करते समय बीत गया और एक वर्ष पूर्ण हुआ
वो दोनों वापस एक वर्ष पश्चात उसी समसान पहुचे और तीनो इकठा हुए ऋषि शिष्य ने कहा मित्रो अब चिंता की कोई बात नहीं मैंने संजीवनी विद्या सीखी है और इसके प्रभाव से मै कन्या को पुनर्जीवित करूँगा आप लोग उसकी अशहियो और भस्म को एक स्थान पर रख दे मै उसे इसी क्षण पुनर्जीवित करता हूँ सभी प्रसन्न हो गए और विधि पूर्वक उसको जीवित करने की प्रक्रिया शुरू कर दी अंत में कन्या जीवित हुई और पुनः उसके सामने वही प्रश्न था की कौन होगा उसका वर
अब कन्या ने निर्णय लिया की जो शमसान में पूरे एक वर्ष तक रहा वह उससे ही विवाह करेगी यह सुनका शमसान वाला तो प्रशन्ना हो गया बाकी दोनों सोच में पड़ गए की आखिर उसने उनको क्यों न चुना जब उन्होंने कन्या से इस निर्णय का कारन पुछा तो उसने उत्तर दिया की आपने मंत्र विद्या द्वारा मुघे जीवन दिया जो िपता का कार्य है इस दृष्टि से आप मेरे िपता हुए जो मेरी अस्थियो को लाये और उनकी रक्षा की ये कार्य पुत्र का है इस दृष्टि से आप मेरे पुत्र के सामान है और जिन्होंने मेरे शारीर की भस्म की रक्षा करते हुए यही निवास किया और मेरे साथ रहे ये कार्य पती का है अतः मैंने इनको ही वरण किया
कन्या के इस उत्तर से सभी संतुष्ट थे क्योकि उसका उत्तर तर्क संगत और धर्म संगत था
प्रिय मित्रो मेरा उद्देश्य यही है की जब आप किसी ऐसी स्थिति में फस जाए की दुविधा में पड़ जाए तो धर्म पक्ष पर विचार करे जो आपको मार्ग दिखायेगा जीवन की परेशानियों से मुक्ति शारीर का तय करके नहीं मिल सकती क्या पता तब स्थिति और भी भयानक हो जाए और हमारे सामने उस दुःख को भोगने के शीवाय कोई दूसरा चारा ना हो
अतः जीवन के खट्टे मीठे अनुभवों का आनंद लेते हुए जियो , प्रेम करो सभी से जो तुम्हे प्रेम करते है और अगर नहीं करते तो जरूर करने लगेंगे --------हरी ॐ तत्सत